ये रास्ते पे पानी क्यूँ है, नाला फूटा मालूम पड़ता है। चप्पल बगल में दबा ली जाती है, पाँव धोए जा सकते हैं किंतु चप्पल का चमड़ा फूल जाएगा । . . Full story👇👇👇👇 वह चला आ रहा था जेठ की तपती दुपहरी में बीड़ी सुलगाते , देह पर एक बदरंग नीली कमीज़, और मटमैली धोती पर चमकदार चमड़े की नई चप्पल । मानो लू के थपेड़े उस पर बेअसर हों। आज करुवा को जैसे घर पहुंचने की जल्दी थी, चाल में एक विशिष्ट लय थी, मुन्नी कैसी खुश होगी, मेरे पैर में छाले उससे नहीं देखे जाते। पूरे दो सौ बीस रुपये कलमूहे ने लिए एक रूपया न छोड़ता था, इतने में महीने की चिलम अच्छी। पर अब कमाते पाँव न जलेंगे।