लग जा गले परदेशी प्राणनाथ ...................... मेरे प्राणनाथ जो आदेश करें, तो हम प्रेम का श्रीगणेश करें। परदेश भ्रमण बहुत हो चुकी, आओ स्वदेश अब लौट चलें। पश्चिम की लगी हवा ऐसी, अपना सब कुछ भूल गए। पिज्जा बर्गर बस भाए मन, लिट्टी चटनी सब भूल गए। पढ़ते रहते टाम ऐण्ड जेरी, पौराणिक कथाएँ न याद रही। माम ऐण्ड डैड के चक्कर में, पितृ-मातृ प्रेम अब भूल गए। अपनी संस्कृति न आई याद, न्यू ईयर मानस में शेष रहे। मेरे प्राणनाथ जो आदेश करें, तो हम प्रेम का श्रीगणेश करें। सरसो के पीले खेत खिले, हमें बांहें फैलाए बुलाते हैं। गन्ने के हरे भरे खेत प्यारे, स्वागत में शीश झुकाते हैं। लाल टमाटर हरी मिर्ची, प्यारी मन को भाती है। आलू कोभी धनिया की मेल, सबके मन को रिझाते है। संक्रांति की त्योहार की चलो, मिलकर तैयारी विशेष करें। मेरे प्राणनाथ जो आदेश करें, तो हम प्रेम का श्रीगणेश करें। यदा कदा रहट की आवाज, कूपों पर सुनाई देती है। कभी कभी बैलों के गले की, घंटी गलियां कह देती है। हलवाहों के कंधे पर जब, हल व हेंगे सज जाते है। ऊसर पड़ी भूमि में भी, हरी फसलें लहलहाती है। दादी नानी की कथाओं से, बच्चे विद्या में प्रवेश करें। मेरे प्राणनाथ जो आदेश करें, तो हम प्रेम का श्रीगणेश करें। नाहर में जब जल भर जाए, खेतों में दौड़े हरियाली। फसलें लहलहाए जब पके, छट जाए गम की बदली काली। खलिहानों के गर्भ में जब, लगती अनाजों की ढेरी। तब चलता है कल का पूर्जा, और सीमा पर तनती गोली। उपवन में कोयल की बोली से, बसंत अभिवादन निर्विशेष करें। मेरे प्राणनाथ जो आदेश करें, तो हम प्रेम का श्रीगणेश करें। ©Tarakeshwar Dubey परदेशी प्राणनाथ #dilkibaat