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किसी भी आदमी में अब कोई ग़ैरत नहीं है; अपनी हद

किसी भी  आदमी में  अब कोई  ग़ैरत  नहीं है;
अपनी  हद में  रहने को  सभी क़ानून ढूँढ़ते हैं। 

अपनी वहशतों पर अब किसी को संयम नहीं है;
स्त्रीगंध में बौराये, नोचने को देह; नाख़ून ढूँढ़ते हैं। 

बेखौफ़ हैं वहशी  दरिंदे; यहाँ  आदमी की शक्ल में,
सृष्टि के आधार में जो, मादक देह और खून ढूँढते हैं।

मोमबत्तियों की रौशनी में, आग अब मिलती कहाँ है ;
भेड़ियों के अंत को रग़ों में, पुरुषार्थ का जूनून ढूँढ़ते हैं। 

क्या बचाएगा कोई क़ानून, किसी अबला की अस्मत को;
अब आदमी की परवरिश में, संस्कारों के मज़मून ढूँढ़ते हैं।

कोई सत्ता,  कोई क़ानून,  ज़हनियत को रोकती कब है;
मरी हुई संवेदनाओं हम, केवल ढोंग का सुकून ढूँढ़ते हैं। 

बेमानी है ये मीडिया, ख़बरों, नेताओं को यूँ कोसते रहना;
असभ्य हो गए हैं हम और इन मुर्दों में नाख़ून ढूँढ़ते हैं। #वहशत
किसी भी  आदमी में  अब कोई  ग़ैरत  नहीं है;
अपनी  हद में  रहने को  सभी क़ानून ढूँढ़ते हैं। 

अपनी वहशतों पर अब किसी को संयम नहीं है;
स्त्रीगंध में बौराये, नोचने को देह; नाख़ून ढूँढ़ते हैं। 

बेखौफ़ हैं वहशी  दरिंदे; यहाँ  आदमी की शक्ल में,
सृष्टि के आधार में जो, मादक देह और खून ढूँढते हैं।

मोमबत्तियों की रौशनी में, आग अब मिलती कहाँ है ;
भेड़ियों के अंत को रग़ों में, पुरुषार्थ का जूनून ढूँढ़ते हैं। 

क्या बचाएगा कोई क़ानून, किसी अबला की अस्मत को;
अब आदमी की परवरिश में, संस्कारों के मज़मून ढूँढ़ते हैं।

कोई सत्ता,  कोई क़ानून,  ज़हनियत को रोकती कब है;
मरी हुई संवेदनाओं हम, केवल ढोंग का सुकून ढूँढ़ते हैं। 

बेमानी है ये मीडिया, ख़बरों, नेताओं को यूँ कोसते रहना;
असभ्य हो गए हैं हम और इन मुर्दों में नाख़ून ढूँढ़ते हैं। #वहशत
gautamanand4109

Gautam_Anand

Bronze Star
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