|| श्री हरि: ||
56 - उलाहना
'दादा, कनूं मेरा दांव नहीं देता। मैं मारूंगा उसे।' श्रीदाम रोष में है। उसका गौर मुख कुछ लाल हो गया है। उसके बड़े - बड़े नेत्र भरे से हैं। दाऊ यहां न होता तो वह अवश्य श्याम से झगड़ पड़ता। यह भी कोई बात है कि कन्हाई उसका दांव नहीं देता और उल्टे उसे अंगूठा दिखाकर चिढ़ाता है। वह दौड़ने में कृष्ण से कुछ दुर्बल तो है नहीं। किंतु यह दाऊ दादा फिर छोटे भाई का पक्ष न लेने लगे।
'यह कुछ अच्छी बात नहीं।' दाऊ के लिए तो सभी सखा समान हैं। वह भला, क्यों छोटे भाई का पक्ष करे। उसने कहा - 'कहाँ है कनूं?'
'दादा।' श्याम बड़े भाई के सामने आकर ऐसा बन जाता है कि देखते ही बनता है।
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