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हर लम्हा ऐसे गुजर रहा है जैसे हाथ से बालू फिशल रहा

हर लम्हा ऐसे गुजर रहा है
जैसे हाथ से बालू फिशल रहा है।
तन्हाई में तो जीना राहबर है,
इस बालू का तकाजा कह रहा है।

©ADV.काव्या मझधार( DK) महाकाल उपासक
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