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वो जो ज्यादा दूर है हमारी पहुंच से कितना मनोहर लगत

वो जो ज्यादा दूर है
हमारी पहुंच से
कितना मनोहर लगता है
वो जो पास है हमारे 
रहने को न मन करता है
जहां तू रह रहा जिसके साथ
उसके बारे में न सोचा कभी
उससे अच्छे की उम्मीद में
उसकी अच्छाइयों को नोचा बहुत
उस दूर वाले को जब तक 
दूर है तू उसे अच्छा ही कहेगा
उस दूर वाले के साथ रहकर 
कुछ दिनों में
तू उसी सोच को आजमाएगा
जिस सोच को,पुष्पित कर रहा
यहां पर जो तुझे आज तक 
जिंदा रखे हुए है... पृथ्वी, चंद्रमा और मनुष्य के प्रति मनुष्य के महात्वाकांक्षी दृष्टिकोण को परिभाषित करती ये चंद लाइनें....
जरूर पढ़े—

वो जो ज्यादा दूर है
हमारी पहुंच से
कितना मनोहर लगता है
वो जो पास है हमारे 
रहने को न मन करता है
वो जो ज्यादा दूर है
हमारी पहुंच से
कितना मनोहर लगता है
वो जो पास है हमारे 
रहने को न मन करता है
जहां तू रह रहा जिसके साथ
उसके बारे में न सोचा कभी
उससे अच्छे की उम्मीद में
उसकी अच्छाइयों को नोचा बहुत
उस दूर वाले को जब तक 
दूर है तू उसे अच्छा ही कहेगा
उस दूर वाले के साथ रहकर 
कुछ दिनों में
तू उसी सोच को आजमाएगा
जिस सोच को,पुष्पित कर रहा
यहां पर जो तुझे आज तक 
जिंदा रखे हुए है... पृथ्वी, चंद्रमा और मनुष्य के प्रति मनुष्य के महात्वाकांक्षी दृष्टिकोण को परिभाषित करती ये चंद लाइनें....
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वो जो ज्यादा दूर है
हमारी पहुंच से
कितना मनोहर लगता है
वो जो पास है हमारे 
रहने को न मन करता है