ए फिज़ाओं ना हँसों हम पर , मोहब्बत से चोट खाए हैं, जिंदगी में थके थके से है हम , खुद से ही घबराए हैं, हम भी कभी बेमिसाल थे , नज़र - ए - ख़्वाब से पछताए हैं, पहचान ना सके उस बेवफा के इरादे, नजरों का धोखा खाए हैं। हाल तो समझ ए दिल-ए-नादां, क्यों गैरों के पीछे, होश गँवाए हैं, जो ना समझे दिल की ख़ामोशियों को, क्यों उन्हीं से दिल लगाए हैं। उसकी नज़रों से बिस्मिल हुए हैं हम, और वो अपनी नज़रें छुपाए हैं, दिल का हाल तो समझ ओ बुतांँ, मौसम भी इश़्क-ए-गुहार लगाए हैं। ♥️ Challenge-525 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।