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जब भी तेरी यादें आती, थोडी सी पी लेता हूं, ज़ख्म ज

जब भी तेरी यादें आती, थोडी सी पी लेता हूं,
ज़ख्म जब उभरने लगते, खुद ही से सी लेता हूं।

नब्ज़ नब्ज़ में जज्बात भरे है, मेरे गुजरे कल के,
याद कर हसता तो कभी रोता ऐसे ही अब जी लेता हूं।

काफिला हुआ करता था मेरे अस्बाबों का कभी साथ मेरे,
मेरे अजीज की रजा इक शाम आज जी भर के रो लेता हूं।

हुक्म अदा जो वो कर गईं तो कैसे ना कह देता मैं,
क्या हुआ चैन से वो सोती है!,खुले आंख मैं सो लेता हूं।

तन्हा तन्हा जीने का तजुर्बा बहुत है मिल चुका,
मिट्टी था मिट्टी हूं अब मिट्टी की चादर मैं ओढ़ लेता हूं।

कब्र मेरी बुला रही है एक अपना बनके बैठी है वो,
जगा हुआ जो इक अर्से से,मैं भी सुकून की नींद सो लेता हूं ।

खबर जो मांगे मेरी फीदाई तो मेरी दुहाई दे देना,
मुक्कमल ना कर पाया इश्क एहतियातन अब रिहाई लेता हूं।

                             ~आशुतोष दुबे #अब रिहाई लेता हूं....
जब भी तेरी यादें आती, थोडी सी पी लेता हूं,
ज़ख्म जब उभरने लगते, खुद ही से सी लेता हूं।

नब्ज़ नब्ज़ में जज्बात भरे है, मेरे गुजरे कल के,
याद कर हसता तो कभी रोता ऐसे ही अब जी लेता हूं।

काफिला हुआ करता था मेरे अस्बाबों का कभी साथ मेरे,
मेरे अजीज की रजा इक शाम आज जी भर के रो लेता हूं।

हुक्म अदा जो वो कर गईं तो कैसे ना कह देता मैं,
क्या हुआ चैन से वो सोती है!,खुले आंख मैं सो लेता हूं।

तन्हा तन्हा जीने का तजुर्बा बहुत है मिल चुका,
मिट्टी था मिट्टी हूं अब मिट्टी की चादर मैं ओढ़ लेता हूं।

कब्र मेरी बुला रही है एक अपना बनके बैठी है वो,
जगा हुआ जो इक अर्से से,मैं भी सुकून की नींद सो लेता हूं ।

खबर जो मांगे मेरी फीदाई तो मेरी दुहाई दे देना,
मुक्कमल ना कर पाया इश्क एहतियातन अब रिहाई लेता हूं।

                             ~आशुतोष दुबे #अब रिहाई लेता हूं....