आकर फिर रुखसत हो जाना, मनमोहक उसका छल है। बादल बिच चांद निकल कर ज्यों, छुप जाता फिर, अगले पल है। उसका दिख जाना ही उर का, प्रकाश पुंज संबल अथाह, दीदार हुआ ना कुछ पल जो, लगता विहीन जीवन जल है। अरुण शुक्ल "अर्जुन" प्रयागराज #किस्मत Neelesh Mishra Neelesh Mishra