रोज़ रोज़ मिटते है, फिर भी ख़ाक न हुए तपते तपते इरादे बन गए, फौलाद, भला अब कैसे अरमान होंगे ख़ाक। अब तो चैन मिलेगा पाकर मंजिल, आंधी तूफानो से कश्ती होगी पार। फौलादी इरादे अब नहीं मानेंगे हार, पार होगी कश्ती चाहे हो मझधार। #इरादें*