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झूठा अहम भरा है तुममें, सूखे पेड़ की लकड़ी सा , ज

झूठा अहम भरा है तुममें, 
सूखे पेड़ की लकड़ी सा ,
जो तुम रोक नहीं पाए
 हाथ पकड़कर पत्नी का।

पीछे से आवाज़ ही देकर
 मुझको टोंक तो सकते थे।
मत जाओ अपराजिता,
 तुम रोक तो सकते थे।

मैं तोक्षऐसा समझ रही 
थी, केवल तुम ही अपने थे।
 ठेस लगी है दिल को 
मेरे ,टूट गए जो सपने थे।


सच कहना अपनी ज़िद 
को, तुम छोड़ तो सकते थे।
मत जाओ अपराजिता, 
तुम रोक तो सकते थे।

©Anuj Ray #मत जाओ अपराजिता...
anujray7003

Anuj Ray

Bronze Star
New Creator

#मत जाओ अपराजिता...

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