किताबे जमीन पर मायूस पड़ी है और जूते सीसों में से झांक कर, हस रहे है लगता है मानव मन से आदा हो गया है भरी भीड़ में भोर में खोया है, किताब में कोई आते जाते सोए लोगे, उसको पागल समझ रहे है लगता है, मानव मन से आदा हो गया है बिनपटरी रेलगाड़ी आवाज कर रही है सुनकर बच्चे, बूढ़े, नाचे रहे है अपने पैरो पे मन में लिए बोझ लोग गुम है कलयुग में लगता है, मानव आदा हो गया है जान जिंदा है पड़ी है जमीन पर सांसों में लोगो को बहम हुआ गैर के गुजर जाने का और जिंदा सांसों का वीडियो बनाने का लगता है मानव आदा हो गया है बना प्यार से घर मकान लग रहा है कोश रहा है खुद को घर, खुशी का न होने के लिए बच्चे, बूढ़े ,जवान, कुत्ते, बिल्ली, चूहे, घूम रहे है झुटी फोन की दुनिया में घर है इंतजार में उनके, लगता है मानव आदा हो गया है ©( prahlad Singh )( feeling writer) मेरा आईना मेरी किताब#Books