वो कहते हैं, मैं अकेला हूँ। कुछ हदों में सही हैं। हर किसी को साथी मैं कहाँ मानता हूँ। मेरी साथी वो रात है; जो ख़ामोशी की बारिश से ओस सी भर आती है। मेरी आँखों से रिसती कुछ सिरहनों में समा जाती है। मेरे साथी वो शब्द हैं; जिन्हें उकेरते हुए कुछ सपने हल्का सा बुनता हूँ, और कचोटते पहलुओं में वो स्वेटर पहन लेता हूँ। मेरा साथी वो वक़्त है; जिसे साथ ले कर चलता हूँ। हर मोड़ ऊँगली थामे, अपने पराए में फ़र्क़ कहाँ करता हूँ। फिर भी वो कहते हैं, मैं अकेला हूँ।। //बातें// वो कहते हैं मैं अकेला हूँ। कुछ हदों में सही हैं। हर किसी को साथी मैं कहाँ मानता हूँ।