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वो कहते हैं, मैं अकेला हूँ। कुछ हदों में सही हैं।

वो कहते हैं, मैं अकेला हूँ।
कुछ हदों में सही हैं।
हर किसी को साथी
मैं कहाँ मानता हूँ।

मेरी साथी वो रात है;
जो ख़ामोशी की बारिश से 
ओस सी भर आती है।
मेरी आँखों से रिसती 
कुछ सिरहनों में समा जाती है।

मेरे साथी वो शब्द हैं;
जिन्हें उकेरते हुए कुछ सपने 
हल्का सा बुनता हूँ,
और कचोटते पहलुओं में
वो स्वेटर पहन लेता हूँ।

मेरा साथी वो वक़्त है;
जिसे साथ ले कर चलता हूँ।
हर मोड़ ऊँगली थामे,
अपने पराए में 
फ़र्क़ कहाँ करता हूँ।

फिर भी वो कहते हैं,
मैं अकेला हूँ।। //बातें//

वो कहते हैं
मैं अकेला हूँ।
कुछ हदों में सही हैं।
हर किसी को साथी
मैं कहाँ मानता हूँ।
वो कहते हैं, मैं अकेला हूँ।
कुछ हदों में सही हैं।
हर किसी को साथी
मैं कहाँ मानता हूँ।

मेरी साथी वो रात है;
जो ख़ामोशी की बारिश से 
ओस सी भर आती है।
मेरी आँखों से रिसती 
कुछ सिरहनों में समा जाती है।

मेरे साथी वो शब्द हैं;
जिन्हें उकेरते हुए कुछ सपने 
हल्का सा बुनता हूँ,
और कचोटते पहलुओं में
वो स्वेटर पहन लेता हूँ।

मेरा साथी वो वक़्त है;
जिसे साथ ले कर चलता हूँ।
हर मोड़ ऊँगली थामे,
अपने पराए में 
फ़र्क़ कहाँ करता हूँ।

फिर भी वो कहते हैं,
मैं अकेला हूँ।। //बातें//

वो कहते हैं
मैं अकेला हूँ।
कुछ हदों में सही हैं।
हर किसी को साथी
मैं कहाँ मानता हूँ।
calmkazi6439

CalmKazi

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