हे दिल्ली के मालिक! इतने भी मासूम न बन जाइए हर दस मिनट पर विज्ञापन में तो मत नज़र आइए माना आपने दिल्ली वालों को छोड़ दिया मरने को कम से कम अपनी शक्ल दिखाकर तो मत चिढा़इए ये जो उम्मीद बन कर आया था आते ही धूमकेतु सा छाया था विषधर निकला यह तो काला और जनता ही बनी निवाला मीडिया को ख़रीद लिया ऐड देकर आक्सीजन की जगह विज्ञापन लो अब न्यायालय को खरीद रहा है