#OpenPoetry गिरहें- """"""" गिरहें खोलना आसान नहीं होता मन की हो तो बिल्कुल नहीं.. फिर भी सोचा,"फुरसत में हूँ सो खोल ही दूँ".. कई गिरहें हैं... नई-पुरानी बड़ी-छोटी तुम्हारे सच की मेरे झूठ की... पहले कौन-सी?.. हरेक का अपना इतिहास अपनी कहानी है... संवेदनाएँ है... हर खुलती गिरह के साथ एक सच प्रकट होगा... आंसू... चोट शंका..संशय...समाधान! मिलन का सच बिछोह का सच सच का सच और झूठ का सच... क्या कहा- झूठ का सच! हाँ,झूठ का भी सच होता है और सच का भी झूठ होता है खैर... तुम नहीं समझोगे,जाने दो... कभी खोली है मन की गिरहें? नहीं, ना...? कभी हिम्मत और फुरसत हो तो खोलना... खुद को ग़लत बता सको तो खोलना... गलतियों का बोझ उठा सको तो खोलना... मैंने तो अपनी खोल दी है ये पहली...ये दूसरी... ये तीसरी... #OpenPoetry #ghumnamgautam #गिरहें