आज बहुत दिनो बाद कोई याद आया है जैसे बरसो बाद बरसात आया हैं हम तो पतझड़ का शाख समझ रहे थे खुद को रुत बदले तो बाहर आया हैं एक अंधेरे कोठरी में दियासलाई की तलाश थी देखो खुद -ब -खुद चलकर आफताब आया हैं कोई उस गहराई तक पहुंचता क्यों नही जितना अंदर तक वो उतर आया हैं मैंने बहुत मुश्किल से छुड़ाया है दामन उससे मीठा लहजा लेके फिर कोई जालसाज आया हैं फरेबी दुनिया, फरेबी लोग ,इश्क फरेबी लेकिन हर झूठे वादे पर ऐतबार हर बार आया हैं। ©Zainab siddiqui #Jalsaz #WritersSpecial