इक परिंदा क्या उड़ा , शजर सूना हो गया., इक तारा क्या टूटा, ये अम्बर सूना हो गया.. उस रोज नाखुदा के साथ, साहिल भी रोया., एक कश्ती क्या डूबी, समन्दर सूना हो गया.. उसके साथ, हँसती - मुस्कुराती थी जिंदगी., वो क्या बिछड़ा, हर इक मंजर सूना हो गया.. खुद ही दस्तक दी , खुद ही दरवाजा खोला., उसके चले जाने से , इस कदर सूना हो गया.. एक शख़्स के चले जाने से, पलट गई बाजी., सिपहसालार के बिना , लश्कर सूना हो गया.. उसके जनाजे में, सारे शहर वाले शामिल थे., उस मसीहा के बिना, पूरा शहर सूना हो गया.. पूरी कायनात में , सबसे नायाब है वो शख़्स., वो जब जमीं पर उतरा तो, ईश्वर सूना हो गया.. ©Balram Bathra #सूना