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जैसे-जैसे हम मनुष्यों को स्वार्

                   जैसे-जैसे हम मनुष्यों को स्वार्थ का नशा चढ़ता जा रहा है, हम अपनी राह में आने वाले हर कांटे को हटा कर फेंक दे रहें हैं। चाहे वह सजीव है या निर्जीव।  स्वार्थ के वशीभूत होकर हम अपने माँ बाप तक को भूल जाते हैं। इसी श्रृंखला में हम "पेड़" उनको भी मोत के घाट उतार देते हैं ( काट देते हैं ) । यह सही नहीं हैं,  जीवन उनमे भी हैं जीव हत्या प्रभु की हत्या समान जो सर्वथा पाप हैं। 

         जब हमें ठोकर लगती हैं तब हमें इनकी याद आती हैं, या कहूँ जरूरतों के वक़्त हम याद करते हैं । अभी कोरोना महामारी
                   जैसे-जैसे हम मनुष्यों को स्वार्थ का नशा चढ़ता जा रहा है, हम अपनी राह में आने वाले हर कांटे को हटा कर फेंक दे रहें हैं। चाहे वह सजीव है या निर्जीव।  स्वार्थ के वशीभूत होकर हम अपने माँ बाप तक को भूल जाते हैं। इसी श्रृंखला में हम "पेड़" उनको भी मोत के घाट उतार देते हैं ( काट देते हैं ) । यह सही नहीं हैं,  जीवन उनमे भी हैं जीव हत्या प्रभु की हत्या समान जो सर्वथा पाप हैं। 

         जब हमें ठोकर लगती हैं तब हमें इनकी याद आती हैं, या कहूँ जरूरतों के वक़्त हम याद करते हैं । अभी कोरोना महामारी
krishvj9297

Krish Vj

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