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गली-गली, चौराहों पर, नैतिकता दम है छोड़ रही।। प्र

गली-गली, चौराहों पर,
नैतिकता दम है छोड़ रही।। 
प्रेमी के संग भाग के बिटिया,
बाप का गौरव तोड़ रही।। 
कुल-दीपक, दीपक भी देखो,
बहन बेटियाँ लूट रहा।। 
व्यसनों में पड़कर देखो,
एकलौता बेटा टूट रहा।। 
फैशन की आँधी ने जाने,
कैसा जहर पिलाया है।। 
मानव-मानव शत्रु बने,
मानवता-तरु कुम्हलाया है।। 

@poetryofsoul

©Shashank मणि Yadava "सनम"
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