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विरह व्यथित था यह मन मेरा ना साज थ

विरह   व्यथित   था   यह   मन    मेरा

ना   साज   था  न   कोई   श्रृंगार   था

दिल   में   उठ   रही   थी  वेदना

संग   रहने   को भी न कोई तैयार था

सुना- सुना था अब हर डगर

जीवन के अस्तित्व पर भी था प्रश्न चिन्ह था खड़ा

भविष्य     छुप   चुका   था किसी ओट में

फिर एक नयी सुबह का लंबे अरसे से इंतजार था

©Anil Vikrant(baal kavi) 
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