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हाँ, मैं औरंगजेब ही हूँ अपने पिता को घर के भीतर ही

हाँ, मैं औरंगजेब ही हूँ
अपने पिता को घर के भीतर ही
कैद कर रखा हूँ
मैं कोई श्रवण कुमार नहीं हूँ
दुनिया बहुत कुछ कहती है
और मैं बस सुन लेता हूँ
मैं अपने पिता को सुखी रोटी और दाल खिलाता हूँ
उनकी कम होती रौशनी
को ले कर मलाल नहीं मुझे
मैं उन्हें किसी से मिलने भी नहीं देता
इसलिए थोड़ा निर्दयी भी हूँ
हाँ, मैं औरंगजेब ही हूँ
उन्होंने चलना-फिरना ,छोड़ रखा है
इसलिए उनकी बैसाखी मैंने तोड़ दी है
उन्होंने पढ़ना छोड़ दिया हैं
इसलिए उनके ऐनक का टूटा शीशा नहीं बदल पाता
मैं श्रवण कुमार नहीं
सिर्फ उनका बेटा बन कर रहना चाहता हूँ
उन्होंने मुझे उँगलियाँ पकड़ कर चलना सिखाया
फिर कैसे उन्हें बैसाखी दे दूँ
उन्होंने मुझे पढ़ाया-लिखाया तो फिर क्यों
मैं उनके लिए अखबार नहीं पढ़ पाऊँ
उनसे मिलने वाले लोग
जब कहते है-अब इस कष्ट से मुक्ति मिल जाये उन्हें
भगवान उठा ले उन्हें
सुन कर बहुत दुःख होता है मुझे
मैं अपने भगवान को
भगवान के पास कैसे जाने दूँ
मेरे पिता ने पाला है मुझे
क्या मैं अपने पिता को पाल भी नहीं सकता
दुनिया औरंगजेब कहती है तो कहे
मैं अपने पिता को आजाद नहीं कर सकता—अभिषेक राजहंस हाँ, मैं औरंगजेब ही हूँ
हाँ, मैं औरंगजेब ही हूँ
अपने पिता को घर के भीतर ही
कैद कर रखा हूँ
मैं कोई श्रवण कुमार नहीं हूँ
दुनिया बहुत कुछ कहती है
और मैं बस सुन लेता हूँ
मैं अपने पिता को सुखी रोटी और दाल खिलाता हूँ
उनकी कम होती रौशनी
को ले कर मलाल नहीं मुझे
मैं उन्हें किसी से मिलने भी नहीं देता
इसलिए थोड़ा निर्दयी भी हूँ
हाँ, मैं औरंगजेब ही हूँ
उन्होंने चलना-फिरना ,छोड़ रखा है
इसलिए उनकी बैसाखी मैंने तोड़ दी है
उन्होंने पढ़ना छोड़ दिया हैं
इसलिए उनके ऐनक का टूटा शीशा नहीं बदल पाता
मैं श्रवण कुमार नहीं
सिर्फ उनका बेटा बन कर रहना चाहता हूँ
उन्होंने मुझे उँगलियाँ पकड़ कर चलना सिखाया
फिर कैसे उन्हें बैसाखी दे दूँ
उन्होंने मुझे पढ़ाया-लिखाया तो फिर क्यों
मैं उनके लिए अखबार नहीं पढ़ पाऊँ
उनसे मिलने वाले लोग
जब कहते है-अब इस कष्ट से मुक्ति मिल जाये उन्हें
भगवान उठा ले उन्हें
सुन कर बहुत दुःख होता है मुझे
मैं अपने भगवान को
भगवान के पास कैसे जाने दूँ
मेरे पिता ने पाला है मुझे
क्या मैं अपने पिता को पाल भी नहीं सकता
दुनिया औरंगजेब कहती है तो कहे
मैं अपने पिता को आजाद नहीं कर सकता—अभिषेक राजहंस हाँ, मैं औरंगजेब ही हूँ