हे! मेरे; कदम कभी खुद का रुख ना बदल, बस तू आगे चल, तू आगे चल। दृढ़ से मेरे विश्वास तू कभी ना टूट, बस तू मुझे सम्भाले रख अटूट। ख्वाइश तू कभी खुद को मत समेट, बस तू जिंदगी को खुद में समेट। साँसों के काफ़िले तू थोड़ा रुक, मुझे एक सांस में जिंदगी जी लेने दे कुछ। अश्रुओं को आँखों तुम सम्भाल रखना, इसमें मौजूद किसी किरदार को नीचे न गिरने देना। शब्दों के जाल में जिंदगी को मैं उलझा रहा, शायद दुनिया के झमेले में मैं खुद कैद कर रहा, होठों से गायब उस हँसी को मैं ढूंढता, शायद खुद में कैद बचपन को फिर मैं जीता। मौजूद मुझमें पूरा समा मुझे यूँ दूर करता, शायद जिंदगी का हर पल मुझसे यूँ लड़ता। मैं खामोश खुद बनने की चाह बुद्ध मे रखता, शायद उस ख़लिश में खुद यूद्ध मैं बनता। मेरे निशान यूँ मुझे पुकारते, मेरे शब्द मुझमें ही घुलते, कदम फिर मैं देख नया मुकाम ढूंढता, उस ख़ामोशी से लिपटा मैं बस कुछ और वक़्त मांगता। हे! मेरे; कदम कभी खुद का रुख ना बदल, बस तू आगे चल, तू आगे चल। #poetry #Hindi #poem #Motivation #Inspiration #Life