ट्रेन की रफ्तार जैसे-जैसे बढ़ती गई मेरे मन के विचार दौड़ने लगे कुछ खिड़कियों से झांकने तो कुछ दरवाजे से बाहर निकलकर नील गगन में उड़ान भरने लगे नतीजन यह हुआ कि कुछ रचनाएं कलमबद्ध हो गई तो कुछ अधूरी रही व कुछ मेरे संग स्टेशन पर उतर गयी ©Aditya Neerav #सफर_मेरा