एक दिन मैं निकल गया दूर अपनी गलियारी से सूखे देखे पेड़ और पौधे बिछड़े जो फुलवारी से लगा ऐसे कुछ कहना चाहते मुझ से अपनी कहानी वो पास बैठा सुनाने लगे अपनी बीती ज़ुबानी वो फल और छाया देते थे जब लगते सब को प्यारे थ डाली पर झूला करते थे खेल खेलते न्यारे थे बूढ़ा हो गया था जब mai रही ना मुझ में जान जभी झड़ गए सारे पत्ते मेरे डालियां हो गई बेज़ान सभी उखाड़ कर फ़ेंक दिया था मुझको अब बेकार मै लगता था भूल गए उस वक़्त को सारे जब मैं फल दिया करता था बहुत रोया था उस दिन मैं जब मुझ पर चलाई आरी थी फिर भी उन बच्चों पर मैने ठूंठ भी अपनी बारी थी बेच कर मेरी सूखी डालियां ठूंठ से भी पैसा कमा लिए तब यही था माना मैने हर फ़र्ज़ मैने अदा कियाi सुन कर के उस पेड़ की गाथा ठनक गया था मेरा माथा मेरी कहानी भी तो यही थी जो मुझको उस पेड़ ने कही थी ©Anita Mishra #मैऔरपेड़#जीवनकासच