हमारी बस्ती में कुछ रोज़ को क़याम करने वाले फ़लक़ तेरा मक़ाम है हमारी ज़मीन तो नहीं ये सच है कि तेरे असर में आ चुके हैं मेरे दिल ओ दिमाग़ मगर तू अब तक एक ख़याल भर है मेरा यकीन तो नहीं मैं जो तलाशता हूँअपने ख़्वाब की ताबीर समझ जाऊंगा एक रोज़ तेरी हक़ीक़त तेरे ख़्वाब से कुछ ज़्यादा हसीन तो नहीं हैं फ़ासले दरमियाँ हमारे बेहिसाब कि बेमानी सब तदबीरें हैं हाँ मगर दिल में तेरे वास्ते ख़याल रखना कोई जुर्म संगीन तो नहीं ये माना इन दिनों मौज़ू है हमारी शायरी का , जान है तू उसकी मगर तेरी तश्नगी तेरी जुस्तुजू हमारी शायरी से बेहतरीन तो नहीं 15/10/21