मैं मेरे पापा के लिए प्रशस्ति पत्र लिख रही हूँ आज जो भी सीखा उनसे वो ज़िन्दगी में आज़माया मैंने सींचा था जिन संस्कारों से मुझे उनको लेकर बढ़ी मैं सदा ज़िन्दगी में मंज़िल मिली है सदा जो राह दिखाई थी मुझे दुनिया में कदम रखा मैंने जब अपने हाथों से चलना सिखाया था मुझे जो सीख दी मुझे ज़िन्दगी में उनसे ही मुक़ाम हासिल हुआ है मुझे देना सीखा सदा दूसरों को ख़ुद पास रहा हो जितना भी आज साथ नही हैं वो मेरे मगर फिर भी सदा आशीर्वाद मिला है उनका उस जहाँ से मुझे❤️ नमस्कार लेखकों!🌺 सितंबर के इस माह में हम हमारे लेखकों के लिए ले कर आए हैं "WOTD" यानी "Word Of The Day," जिसके अंतर्गत लेखकों को हर दिन एक नया शब्द/ मुहावरा या वाक्यांश दिया जायेगा जिसका प्रयोग उन्हें अपनी कविता/ लेखन में करना होगा। नियमों की सूची नीचे अनुसार है :