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आज थोड़ा सा वक़्त चुराया था ज़ीस्त-ए-समंदर से, ज़िन्दग

आज थोड़ा सा वक़्त चुराया था ज़ीस्त-ए-समंदर से,
ज़िन्दगी  कई  बार  गुजरी  थी ,  दर्द   के  बवंडर से,

उस   दर्द   को   आज  ज़िन्दगी पी जाना चाहती है,
वो  ख्वाब   अधूरा सा , फ़िर से जी जाना चाहती है,

उबरना चाहती है जिंदगी आज ,उन स्याह अंधेरों से,
मिलना चाहती है मुस्कुरा के ,उन हँसते हुए सवेरो से,

मुद्दतो बाद नाव ज़िन्दगी की , साहिल किनारे लगी है,
मौत   से   लड़कर  आज   जीने की   उम्मीद जगी है,

कई बार हौसलों के दम , साँसों की  डोरी को संभाला,
कई बार  हिम्मतों  ने , रूहानी  ताकत   को   खंगाला,

अब   जाकर    इन    लहरों  से , हमें लड़ना आया है,
तैरकर  कर   साहिल    को ,    पकड़ना    आया   है,

ज़िन्दगी तू हमें सम्भाल लेना ,  हम तुझे सम्भालते हैं,
दर्द  की  मचलती  लहरों  को , साहिल  में  ढालते है ।।

-पूनम आत्रेय

©poonam atrey
  #साहिलकिनारे