शैतानियांँ बचपन की आज भी करने को तरसता है दिल, एक बार फिर से वही जिंदगी जीने को मचलता है दिल। बारिश में भीगना भीग करके फिर नहाना याद करता है दिल, कागज की कश्ती बारिश के पानी में बहाना चाहता है दिल। भरी दोपहर में बागों में जाकर आम चुराना याद करता है दिल, वो गिल्ली डंडा, पकड़म पकड़ाई फिर खेलना चाहता है दिल। टिफिन छोड़कर कैंटीन के समोसे खाना चाहता है ये दिल, दोस्तों संग मिलकर फिर वही शैतानियांँ करना चाहता है दिल। पेट दर्द का बहाना बना स्कूल से बंक मारना चाहता है ये दिल। जिम्मेदारियों के बोझ से परे बेफिक्री की जिंदगी चाहता है ये दिल। ♥️ Challenge-594 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।