अब ख्वाइश नहीं है तुझे पाने की अब तो बस जिध है तुझे भुलाने की अब सोचकर भी डर लगता है मुझे तेरे ऊन गलत इरादो मे डूब जाने की मुस्किल से खुद को फिर मैने पाया है अब शौक है असमान मे पंख फैलने की मै लौट आऊंगा ये तू उम्मीद ना रख अब समय है मुझे खुद को आजमाने की हर दर्द को फिर से मै अब सह लूँगा बस एक जिध है, अपनी मंजिल पाने की ©Rupesh Dewangan #जिध