तौहीन इश्क़ की सनम तुमने की बहुत है वफ़ा नदारद रही, खिलवाड़ की बहुत है तुम तो सुन न पाए मेरे ज़िंदा लफ़्ज़ों को ही वर्ना मेरी करवटों ने भी आहट की बहुत है आई एक बरसात और उसने गले लगाया तुम्हारे दिए हर अश्क को समेटा बहुत है ख़ामोश आहों ने भी मेरी चीख पुकार करी इंतेज़ार मे तुम्हारे हम हमदम तड़पे बहुत हैं मेरी राहों में तुम्हें जाने क्यों मंज़िल न मिली मेरे क़दमों ने तो तुम्हारी पहचान की बहुत है ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1060 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।