रुखा सूखा लोकतंत्र अर्थहीन हुआ ! काग़ज़ों में सिमटा जनहित व्यथित हुआ !! नेताओं की राजनीति ही है चरम पर ! त्रस्त जन के हाथ पहुंचे न मरहम तक !! पत्रकारिता चाटुकारिता में है मस्त ! सच्ची कलम पहुँचती नहीं जन जन तक !! बैंकों में रक़म सुरक्षित 5 लाख तक ही ! पाँच लाख किसी के लिये पर्याप्त नहीं !! रोज़गार का अकाल है ! गरीब को 5 किलो अनाज है !! केवल अनाज से जीवन नहीं चल सकता ! हाथों को काम मिले बिना जन का मन नहीं लगता !! धार्मिक उन्माद फैलाये जाते ! राजनीति को इससे चमकाते !! गुंडे बेख़ौफ़ है जनता है खौफजदा ! नाम के जनराज में जनहित लापता !! युवाओं को दिशाहीन बना रहे ! दिशा विहीनता से नशे के आगोश में जा रहे !! बुद्धिजीवियों को इतिहास में उलझा रक्खा है ! निडर बुद्धिजीवियों को जेलों में बिठा रक्खा है !! ©Ashok Mangal #AaveshVaani #JanMannKiBaat #democracy