न सख्यमजरं लोके हृदि तिष्ठति कस्यचित्। कालो ह्येनं विहरति क्रोधो वैनं हरत्युत॥ हमेशा किसी भी मनुष्यमे मित्रता नहीं बनी रहती है,मित्रता या तो समय के साथ कम हो जाती है, या तो क्रोधके कारण समाप्त हो जाती है.. (जिसमे ये दोनो नही होते वही सच्चे मित्र है)। ©Vimal Pandey Jyotishi ji #sanskrit #संस्कृत #संस्कृति #Thoughts