दर ओ दीवार, खिड़कियां और दरीचे तो साफ़ रक्खे हैं मगर हमने अपनी आस्तीन में ही साँप पाल रक्खे हैं क्या ख़बर है के कौन माँगता हुआ मिल जाये हमने सबके हिस्से के सिक्के निकाल रक्खे हैं अभी से क्या गिला करें, अजीजो को क्यूँ रुसवा करें हश्र के दिन के लिये, सारे दर्द सम्भाल रक्खे हैं ये जिंदगी है या कोई, जादू नगरी का है रास्ता हर कदम हर मोड़ पर, नये नये बवाल रक्खे हैं तुम पूछती हो मुझसे, यूँ चुप चाप सा क्यूँ रहता हूँ मैं तुम्हें क्या बताऊँ ऐ दिलरुबा, ख़ामोशियों में जो सवाल रक्खे हैं कठपुतलियों सी जिंदगी, किसी के इशारों पर है नाचती जिसने उरुज बख्शा है, उसी ने जवाल रक्खे हैं यहाँ "पागल" बन्दरों की भीड़ है ,और अंधे बहरे नाचते कुछ भी हो मियां, तुमने हर इक जानवर कमाल रक्खे हैं इजाज़ अहमद "पागल" #ejaz #pagal #yqghalib #shayari #poetry #life