प्रातः होते ही वह सबकी जरूरत पूरा करने में लग जाती हैं बस वो दो पल सुकून के चाहती है, भूला वो अपना गम वो सबके गम में खड़ी पाती हैं, तभी तो नारी विश्व मे दिव्य शक्ति कहलाती है, अपनों के खातिर भूला स्व को वो दिनभर काले धुंए में बिताता हैं बस वो दो पल सुकून के चाहता है, न खबर उसे अपने आज और कल की वह ताउम्र घर का मोह त्याग वह मजबूर मजदूर कहलाता है, जीवनकालचक्र में खुशियों व दुःखों की आवाजाही लगी रहती है,बस कमी दो पल सुकून की रहती है, निकल बन्दे इस जीवनमोह की उलझनों से जी ले दो पल सुकून के बस यही आस हर किसी की रहती है। 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏 💫Collab with रचना का सार..📖 🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों को प्रतियोगिता:-65 में स्वागत करता है..🙏🙏 *आप सभी 6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।