"किसान की बेटी (सोने की चूडि़याँ)" ( कहानी अनुशीर्षक में पढ़े) किसान की बेटी माँ मेरे जन्मदिन पर नया . . . खाना खाते-खाते मेरे नौ वर्षीय बेटे ने ना जाने कितने सामानों की सूची मुझे पकड़ा दी I मैं ने उसका माथा चूम कर बोला ठीक है जो भी तू चाहेगा। उसने भी पलट कर मुझे चूमा । मैं उसकी आंखों में अपना बचपन देख रही थी। हम जब भी कुछ फरमाइश करते वह कभी भी तुरंत पूरी नहीं होती थी। माँ चुमकर बोलती ठीक है इस बार फसल पर ला दूंगी । हमें तो नए कपड़े भी जन्मदिन पर नहीं फसल पकने पर मिलते थे, वह भी साल में एक बार I मुझे विचारों में डूबा देखकर मेरा बेटा खाना छोड़ कर उठने लगा । मैंने उसे पकड़ लिया ना बेटा खाना छोड़ना, अन्न की बर्बादी नहीं करते हैं। हम किसान है ना, यह अन्न तो हमारा भगवान है, हमारी आजीविका का सहारा। मेरा बेटा आश्चर्य से पूछता है माँ हम किसान हैं ? डू वी आर फार्मर ? पर पापा . . . . . I मैंने कहा तेरे पापा नहीं, मेरे पापा । जो भी हो अन्न की बर्बादी नहीं करनी चाहिए । वह तुनकते हुए बोला पर आज कितनी अच्छी बारिश थी । अपने भजिया (पकौड़ी) क्यों नहीं बनाई ? मैं क्या समझाती उसे कि इस बिन मौसम की बारिश में शायद मेरे पापा के खेतों में पानी भर गया होगा। तैयार अन्न खेत में पड़ा भीग रहा होगा । पापा फिर सिर पर हाथ रखकर बैठे होंगे। यह बारिश शायद उनकी आंखों से भी हो रही होगी । यह बारिश भी अजीब चीज है ना, कहलाती तो किसान की दोस्त है पर गाहे-बगाहे किसान को रुला ही जाती है । बाहर बहुत जोर की बारिश हो रही थी । बाहर टीन पर पड़ती बारिश की बूंदों की छम छम और पनारी से गिरता पानी मुझे अपने साथ खेलने के लिए आमंत्रित कर रहे थे । मेरा बेटा तो कपड़े उतार कर पानी में भीगने भी लगा । मैंने हमेशा की तरह पहले पापा को फोन लगाया। हाल-चाल पूछे और पूछा यह बारिश खेतों के लिए अच्छी है या नहीं। पापा हमेशा की तरह धीर गंभीर स्वर में बोले बारिश हर किसान के लिए अलग-अलग भाव लेकर आती है। इस बार तो नसीब से मैंने अपनी सरसों कल ही बखार में रखवा ली थी पर तुम्हारे चाचा लोग का अभी भी खेत में ही पड़ा है । सब भीग गया । बचपन के कुछ दिन तो यादों से मिटायें ही नहीं मिटते । वह दिन जब बारिश होने पर पापा मेरा और मम्मी का हाथ पकड़कर बारिश में भीगते हुए खूब नाचे थे क्योंकि बारिश समय पर आई थी। कुछ महीनों बाद ऐसी ही एक बारिश में जब मैं पापा को खींचकर ले जाने लगी तो पापा ने मुझे झिड़क दिया, काहे की बारिश ? पूरी खेती खराब हो गई । मेरा बालपन आज तक समझ ही नहीं पाया कि बारिश होने पर खुश होना है या दुखी । उसके बाद जब भी बारिश होती आस-पड़ोस के बच्चे खुश होते बारिश में खेलते, स्कूल में रेनी डे मिलता, खुशी मनाते पर मैं पहले पापा के पास जाती और पूछती पापा यह बारिश फसल के लिए अच्छी है या खराब । कभी-कभी तो अच्छी बारिश भी किसान को रुला देती है। मुझे आज भी याद है वह दिन जब बाजार जाने के लिए मैंने रिक्शा किया था और रिक्शे वाले काका को बोला, "काका बड़े चौराहे पर विधि मार्केट पर रोक देना" । वह बोले, "बिटिया बता देना कहां रुकना है" । मैंने पूछा काका शहर में नए आए हो क्या ? वह बोले, "गांव से खड़खड़ा पर लदवा कर फूलगोभी लाया था । इस बार बारिश अच्छी थी तो फसल बहुत अच्छी हुई थी । थोक मार्केट में बेचने गया तो एक रुपए बोरी बिक रही थी । दस बोरी का दस रुपया मिला I वह ढुलवायी के लिए खड़खड़े वाले को दे दिया । अब घर खाली हाथ कैसे जाऊं , इसलिए रिक्शा चला रहा हूँ कि कुछ कमाई हो जाए। यह फूल गोभी जो हम पाँच रुपये की एक खरीदते हैं वह एक रुपए की बोरी ???? बताओ अच्छी बारिश अच्छी फसल भी किसानों को रुला देती है ।