केशव की प्रीत , मीरा की भक्ति केशव माधव बोली मेरा , मन को आपनो टटोले मीरा।। गिर्धेर की वो दासी मीरा, प्रेम में रमती जाती मीरा ।। कुछ नहीं भावे मोहे शियाम टोहरो बिनु , राट लगती जाती मीरा ।। बालपन बितो , यौवन तब आयो , बालपन में शियान मोहे भावों, यौवन तक ओझल हो गई।। असुवन की वो विरह दीवानी , नार नवेली पनघट रानी।। मारी - मारी जाऊ, डोरी - डोरी जाऊ, बली - बली जाऊ, सज - ढज जाऊ! मेरो प्रीतम केशव - माधव ! दूजो ना कोई मोहे भावे ! राणा की बात तली मीरा । मन की सुनकर नाची मीरा! जोगन बनकर चली मीरा , विषपान कर चली मीरा । केद में जीवन बितावन फिर्त है। भजन गाती ; सेवा करती; गिरधर के चरणों की धूल माथे ...से लगती।। आंखियान में पानी ; भीगी जवानी। होथो पर एको नाम सुमिरो हो भजन गाओ जी , कीर्तन गाओ जी, गिरधारी का नाम धोग्रावो जी।। मीरा का तो एक ही नारा श्याम मोरा प्रीतम , श्याम मोहे पियारा ।। केशव माधव बोली मेरा मन का आपनो टटोली मीरा ।। ... कवि सोनू केशव की प्रीत मीरा की भक्ति