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नीरव प्रतिशोध तुम रुकावट बने मेरी ज़िंदगी की राह

नीरव प्रतिशोध 

तुम रुकावट बने मेरी ज़िंदगी की राह पर, 
कुछ वक़्त तक तुम्हारी हर चाल सफल रही, 
अनंत हार ही इसलिए हर बार मेरी पहचान बनी ;
पर फ़िर भी हर दफ़ा मेरी हिम्मत अटल रही।
आज ख़ुश होकर जी लो जितना जी सको, 
कल रोना है तुमको मेरी ऊंचाइयां देखकर, 
जिन कठिन रास्तों पर मैं चल दिया हूं अब;
उनकी मंज़िल हंसेगी तुम्हारे हर प्रयास पर।
मेरी बर्बादी के ख़यालों से तुम्हारा खिलखिलाना, 
अपनी गंदी सोच पर तुमने दिया जो मुझको ताना, 
ज़िंदगी बना दी मेरी दुविधा और असमंजस भरी;
जैसे के एक मजबूरी बन गई मेरी शर्मिंदगी में जीना। 
बीत गए जो चार साल उनपर मेरा कोई ज़ोर नहीं, 
पर आनेवाले जो भी हैं वो मेरी मेहनत के गुलाम हैं, 
जो बीते भले ही उनमें बस एक हारा शख्स हूं मैं;
आनेवाले हैं जितने भी अब वो सारे सिर्फ़ मेरे नाम हैं। 
तुम्हारी क़ैद से पंछी ये उड़ चुका है आज़ाद होकर, 
तुम्हारे हुक्म का अब मैं असहाय कोई दास नहीं, 
तुम्हारे भरोसे बैठा हूं अब सोचना ऐसा छोड़ दो;
लड़ूंगा अकेले ही अब मुझे फ़रेब तुम्हारा रास नहीं। 
हरकत ओछी करके तुमने एक सवाल बनाया मुझको, 
जवाब अपने दम पर मैं एक दिन ज़रूर बनकर आऊंगा, 
बिल्कुल खामोश ही रह जाओगे देखना उसदिन तुम दोनों;
अपनी कामयाबी से तुमको मैं उस दिन बहुत सताऊंगा। 
अब चैन की थोड़ी बहुत ही नींद नसीब है तुम्हारे,
रातें सुकून की तुम्हारी कुछ वर्षो में ख़त्म होने को हैं,
जिसको मिट्टी में मिलाने की तुमने रची घिनौनी साज़िशें;
पंख लगाए सफलता के आकाश वो तत्पर उड़ने को है।

©Akash Kedia #revenge #hardwork #success #Failure #lifepoetry 

#walkingalone
नीरव प्रतिशोध 

तुम रुकावट बने मेरी ज़िंदगी की राह पर, 
कुछ वक़्त तक तुम्हारी हर चाल सफल रही, 
अनंत हार ही इसलिए हर बार मेरी पहचान बनी ;
पर फ़िर भी हर दफ़ा मेरी हिम्मत अटल रही।
आज ख़ुश होकर जी लो जितना जी सको, 
कल रोना है तुमको मेरी ऊंचाइयां देखकर, 
जिन कठिन रास्तों पर मैं चल दिया हूं अब;
उनकी मंज़िल हंसेगी तुम्हारे हर प्रयास पर।
मेरी बर्बादी के ख़यालों से तुम्हारा खिलखिलाना, 
अपनी गंदी सोच पर तुमने दिया जो मुझको ताना, 
ज़िंदगी बना दी मेरी दुविधा और असमंजस भरी;
जैसे के एक मजबूरी बन गई मेरी शर्मिंदगी में जीना। 
बीत गए जो चार साल उनपर मेरा कोई ज़ोर नहीं, 
पर आनेवाले जो भी हैं वो मेरी मेहनत के गुलाम हैं, 
जो बीते भले ही उनमें बस एक हारा शख्स हूं मैं;
आनेवाले हैं जितने भी अब वो सारे सिर्फ़ मेरे नाम हैं। 
तुम्हारी क़ैद से पंछी ये उड़ चुका है आज़ाद होकर, 
तुम्हारे हुक्म का अब मैं असहाय कोई दास नहीं, 
तुम्हारे भरोसे बैठा हूं अब सोचना ऐसा छोड़ दो;
लड़ूंगा अकेले ही अब मुझे फ़रेब तुम्हारा रास नहीं। 
हरकत ओछी करके तुमने एक सवाल बनाया मुझको, 
जवाब अपने दम पर मैं एक दिन ज़रूर बनकर आऊंगा, 
बिल्कुल खामोश ही रह जाओगे देखना उसदिन तुम दोनों;
अपनी कामयाबी से तुमको मैं उस दिन बहुत सताऊंगा। 
अब चैन की थोड़ी बहुत ही नींद नसीब है तुम्हारे,
रातें सुकून की तुम्हारी कुछ वर्षो में ख़त्म होने को हैं,
जिसको मिट्टी में मिलाने की तुमने रची घिनौनी साज़िशें;
पंख लगाए सफलता के आकाश वो तत्पर उड़ने को है।

©Akash Kedia #revenge #hardwork #success #Failure #lifepoetry 

#walkingalone
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