रंग-ओ-रस की हवस और बस मसअला दस्तरस और बस यूं बुनी हैं रगें जिस्म की एक नस टस से मस और बस उस मुसव्विर का हर शाहकार साठ-पैंसठ बरस और बस सब तमाशा-ए-कुन-ख़त्म-शुद कह दिया उसने बस और बस #AmmarIqbal . ©Raushni Tripathi रंग-ओ-रस की हवस और बस मसअला दस्तरस और बस यूं बुनी हैं रगें जिस्म की एक नस टस से मस और बस उस मुसव्विर का हर शाहकार साठ-पैंसठ बरस और बस