दुगो के बीच बातचीत शीर्षक :-गाँव और रोजगार का करब शहर में जाके, ना शुद्ध पानी मिली ना हावा । पैसा के थाह लाग जाई, किनत - किनत दावा ।। गाँव के प्यार शहर में ना मिली, नाही मिली उहवाँ हरियाली। एगो कमरा में बन्द भइल भइल उड़ जाई तोहरा होठ के लाली।। गाँव के चबूतरा प बैठ साँझली बेरा, हमनी सब जवन करीना जा बात। शहर मँ ई बतकही खातिर तू तरसब दिन-रात ।। एहि से कह तानी एगो बात, सुन ध्यान लगा के, गाँव में ही काहे न कुछ कइल जाव, एक दोसरा के तरफ हाथ बढ़ा के।। :-विवेकानंद उपाध्याय #गायों प्रेम