कि मान बैठे थे जिसको खुदा हम भी वो तो नज़रे नसूर होगया पाया भी क्या था खोया भी क्या है जब खुद ही खुद से दूर होगया । मैं वक्त की इबादत अब नही करता वक्त ने बहुत सताया है गैरों को अपना और अपनों को गैरा इसने यही बताया है । पर वक्त के मंसुब्बे भी बहुत सही थे इसने हमें संभाला है कठिन राह पर साथ चला और उनसे हमें निकाला है । -सचिन 😎 #wakt