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बिन सिया के, राम अधूरे है। बिन राधा के,कृष्ण। बिन

बिन सिया के, राम अधूरे है।
बिन राधा के,कृष्ण।
बिन नारायण तो,
लक्ष्मी भी अधूरी,
जैसे बिन सक्ति के शिव।
मिलकर ही सब पूर्ण हुए है।
विरह की पीड़ा में जले थे दोनो
भूल गए हैं शायद वो
एक तरफ ना सहा गया था 
कोई वियोग ।

©Ujjwal Kaintura
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