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ख्वाहिशें दबी दबी सी रहने लगी है आज़ कल मेरी, ए बे

ख्वाहिशें दबी दबी सी रहने लगी है आज़ कल मेरी,
ए बेख़बर!
लगता है जरूरतों ने अपनी आवाज बुलंद कर दी।। #57
ख्वाहिशें दबी दबी सी रहने लगी है आज़ कल मेरी,
ए बेख़बर!
लगता है जरूरतों ने अपनी आवाज बुलंद कर दी।। #57