खो गया है वो, कहीं किसी गली और नगर में मिलता नहीं है कहीं अब समानता का भाव है अमीर और गरीब का फ़ासला यूँही बढ़ रहा है पूरक एक दूजे के, फिर समानता का अभाव है कोई जीता ज़िन्दगी सुकून से हर रोज़ यहाँ पर किसी को नसीब नहीं, सूखी रोटी का अभाव है सपने-सपने बनकर रह गए पलकों तले आज किसी के नसीब में सिर्फ़ सुकून की ही छाँव है समानता सिर्फ़ लफ्जों में सीमट गई आजकल यथार्थ जीवन मे तो इसका आज भी अभाव है #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #समानताकाभाव #kksc23