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दिवाने दिल को समझ क्या रख्खा है.. ए हुस्न मोहब्बत

दिवाने दिल को समझ क्या रख्खा है..
ए हुस्न मोहब्बत को तमाशा बना रख्खा है..

ख़ुद पे ग़ुमाँ न कर तेरा वजूद ही क्या 
वो तो इश्क़ ने तुझे सर पे बिठा रख्खा है..

जला देना तो तेरी आदत रही है शमा 
परवानों ने फिर भी उम्मीद लगा रख्खा है..

कद्र कर उनकी जो फ़िदा हैं तुझ पर 
तेरी इक झलक को पलकें सजा रख्खा है..

तेरी लगाई आग में जलते हैं दिलजले  
तू महफूज रहे तो हर दर्द दबा रख्खा है..!

©अज्ञात #दिल
दिवाने दिल को समझ क्या रख्खा है..
ए हुस्न मोहब्बत को तमाशा बना रख्खा है..

ख़ुद पे ग़ुमाँ न कर तेरा वजूद ही क्या 
वो तो इश्क़ ने तुझे सर पे बिठा रख्खा है..

जला देना तो तेरी आदत रही है शमा 
परवानों ने फिर भी उम्मीद लगा रख्खा है..

कद्र कर उनकी जो फ़िदा हैं तुझ पर 
तेरी इक झलक को पलकें सजा रख्खा है..

तेरी लगाई आग में जलते हैं दिलजले  
तू महफूज रहे तो हर दर्द दबा रख्खा है..!

©अज्ञात #दिल