ये दर्द ये बेचैनी ये चुभन ये तन्हाई क्यूँ..
मर्ज बढ़ गया ये खोख़ली दवाई क्यूँ..
आज़ारों में तू दर्द से चीख़ा था रातों
असरार बन कहर टूटे मुझ पर तबाही क्यूँ ..
तेरे जिस्त का मेरे जिस्त से है रूहानी ताल्लुक
फिर अस्ल चेहरे में मुख़ोटों की बीनाई क्यूँ ..
कलम काँपे स्याह उगले अश्कों सा जहर
इश्क़ नहीं ये फिर लिखें उस पर रूबाई क्यूँ...