आओ तुम्हें में द्वापर की एक कथा सुनाता हूं| एक अद्भुत बालक था उसकी कथा सुनाता हूं| अभिमन्यु मां के पेट में ही उसने चक्रव्यू को तोड़ना सीख लिया बाहर निकलना छोड़ो उसने दिलों को जीतना सीख लिया मौत नाच रही थी संघ चक्रव्यू के घेरे में तीर तलवार पड़े थे सोच में हम आ गए किसके फेरे में हथियार सिसक रही थी जब उसके तन को छूते थे धरती अंबर भी देख देख चुपके-चुपके रोते थे जख्म बुलाते थे अपनों को कोई तो मरहम लाएं जान जानी है तो जाए पर सूर्य छिपने तक रुक जाए जब पीड़ा हद से गुजरने लगी धरती मैया फटने लगी जिस्म के टुकड़े टुकड़े हो गए फिर भी वह लड़ता रहा कौरवों के सीने पर जैसे कोई खंजर चलता रहा कॉल खड़ा था सर पर पराक्रम देख रोता रहा अन्याय इस धरती पर सदियों से होता रहा हाथ जोड़ ऊपर वाले से और यही कहता रहा यह बालक अद्भुत है भगवान हार नहीं मानेगा कि नहीं चलेंगे तो रथ का पहिया भी निकालेगा रक्त का दरिया देख करण बली रोने लगा अपने बेटे के जख्मों पर दुआओं का मरहम रखने लगा फिर कायर दुर्योधन ने ऐसा आदेश दिया एक नियति बालक पर छे छे लोगों ने वार किया दिल का दर्द करण बली से जब बर्दाश्त नहीं हुआ फिर अपनी तलवार कारों के बेटे की तरफ मोड़ दिया मार कटारी बेटे को खुद सीने से लगाया है| हे ऊपर वाले कैसी तेरी लीला कैसी तेरी माया है अब पिता ने बेटे को आदेश दिया अभिमन्यु तो अभिमन्यु था आदेश स्वीकार किया और अभिमन्यु बोला मेरे पिता से कहना और मैंने रणभूमि में सब को परास्त किया हां पुत्र तुझ अर्जुन को नहीं मुझको भी नाज है आज के बाद जब भी कोई इतिहास दौर आएगा अर्जुन करण से पहले वीर अभिमन्यु का नाम आएगा पुत्र हम श्रेष्ठ रह गए दोनों और तुम सर्वश्रेष्ठ हो गए और पुत्र अब तुम शांत हो जाओ महाबली की आंखों में अभिमन्यु ने देख दम तोड़ दिया|........................... करण सा दानी अभिमन्यु सा बिर नहीं होगा| होने को कुछ भी हो सकता है झूठे संसार में| अब कोई महाभारत होगा इस पूरे संसार में| जोशी इस कथा से बुराइयों का मरण होगा| ©joshi joshi diljala आओ तुम्हें में द्वापर की एक कथा सुनाता हूं| एक अद्भुत बालक था उसकी कथा सुनाता हूं| अभिमन्यु मां के पेट में ही उसने चक्रव्यू को तोड़ना सीख लिया बाहर निकलना छोड़ो उसने दिलों को जीतना सीख लिया मौत नाच रही थी संघ चक्रव्यू के घेरे में तीर तलवार पड़े थे सोच में हम आ गए किसके फेरे में हथियार सिसक रही थी जब उसके तन को छूते थे धरती अंबर भी देख देख चुपके-चुपके रोते थे जख्म बुलाते थे अपनों को कोई तो मरहम लाएं जान जानी है तो जाए पर सूर्य छिपने तक रुक जाए जब पीड़ा हद से गुजरने लगी धरती मैया फटने