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मैंने बेवफा लोगो से भी वफादारी की। कभी ना हमने किस

मैंने बेवफा लोगो से भी वफादारी की।
कभी ना हमने किसी से मक्कारी की।

सुबह देखा नहीं शाम का कुछ पता नहीं।
इन्ही बे'तरतिबियों ने ही सब बिमारी की।

घर में जवां इज़्ज़त और आज का समाज।
बूढ़ी हड्डियों ने फिर रात भर पहरेदारी की।

गम हो या खुशी इन्हें सियासत सुझती है।
हुक़ूमत ने जिंदगियों की कालाबाज़ारी की

हिंद पर कुर्बान होने को लंबी कतारें थी।
तब कहीं फतह-ए-इंकलाब की ज़ारी की।

गरीब है मजबूर है मगर मेहनतकश है।
मजदूर ने काम से कभी न बेगारी की।

सरहद पर कोई मेरा भाई भूखा होगा।
इसी ख्याल से जय ने भी न इफ्तारी की।
मृत्युंजय जौनपुरी

©mritunjay Vishwakarma "jaunpuri" ग़ज़ल #bestgazal #sheroshayari #mjaivishwa 

#ishq
मैंने बेवफा लोगो से भी वफादारी की।
कभी ना हमने किसी से मक्कारी की।

सुबह देखा नहीं शाम का कुछ पता नहीं।
इन्ही बे'तरतिबियों ने ही सब बिमारी की।

घर में जवां इज़्ज़त और आज का समाज।
बूढ़ी हड्डियों ने फिर रात भर पहरेदारी की।

गम हो या खुशी इन्हें सियासत सुझती है।
हुक़ूमत ने जिंदगियों की कालाबाज़ारी की

हिंद पर कुर्बान होने को लंबी कतारें थी।
तब कहीं फतह-ए-इंकलाब की ज़ारी की।

गरीब है मजबूर है मगर मेहनतकश है।
मजदूर ने काम से कभी न बेगारी की।

सरहद पर कोई मेरा भाई भूखा होगा।
इसी ख्याल से जय ने भी न इफ्तारी की।
मृत्युंजय जौनपुरी

©mritunjay Vishwakarma "jaunpuri" ग़ज़ल #bestgazal #sheroshayari #mjaivishwa 

#ishq