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मेरे शहर में अब कोई किस्सा नहीं रहता, जो भी रहता ह

मेरे शहर में अब कोई किस्सा नहीं रहता,
जो भी रहता है देर तलक इंसा नहीं रहता!

यूँ तो रोज मिलते है वो लोगो से मगर,
हमसे उनका तालुक पहले जैसा नहीं रहता!

बहुत किस्से दफ़न है मेरे कागज कि कब्रों में,
अजीब बात है ना, अलफ़ाज़ कोई जिंदा नहीं रहता!

यूँ तो सब जानते होंगे अस्मि कौन है,
अजब शख्स हूँ "मैं"महफिल में मेरा किस्सा नहीं रहता!

अक्सर मिलते है लोग यहाँ मुस्कुरा कर मुझे,
लेकिन फिर चेहरों पर उनके वो चेहरा नहीं रहता!

किरदार वही है मेरा जो दिखता है तुमको,
जाने क्यूँ तुम में अब कोई तुम सा नहीं रहता!

मुक़्क़मल नहीं इस जहाँ में कोई ये खबर है हमें,
इसीलिए हम को किसी से गिला नहीं रहता!

नजर अंदाज कर देती हूँ बगावत लोगो की,
कि नफरतों का मेरे जीवन में हिस्सा नहीं रहता!!

©Asmita Singh
  #kitaab
तर्ज ऐ जमीं- बशीर बद्र साहब
अल्फाज़ -अस्मिता
पहली कोशिश मेरी कुछ ग़ज़ल जैसा लिखने की..
पढ़ कर प्रतिक्रिया जरूर दे 🙏🏻🙏🏻🙏🏻 प्रशांत की डायरी अmit कोठारी "राही" विवेक ठाकुर "शाद" सुनील 'विचित्र' Prince_" अल्फाज़"
asingh5445104082603

Asmita Singh

New Creator

#kitaab तर्ज ऐ जमीं- बशीर बद्र साहब अल्फाज़ -अस्मिता पहली कोशिश मेरी कुछ ग़ज़ल जैसा लिखने की.. पढ़ कर प्रतिक्रिया जरूर दे 🙏🏻🙏🏻🙏🏻 @प्रशांत की डायरी @अmit कोठारी "राही" विवेक ठाकुर "शाद" सुनील 'विचित्र' Prince_" अल्फाज़"

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