, छोटा सा मन जैसे सागर के कोने को छूता गगन ना हो चिंता किसी कि रहूँ मैं मगन जैसे बंजर सी धरती में फैला हो वन ये नाले, ये नदिया, ये झीलें तमाम बने काबिल, न प्यासा रहे इंसान ये गेहूं, ये चावल, ये आलू-प्याज हों इतना ना भूखा हो कोई समाज #nojotothought #nojotokavita#भूखा #प्यासा #bhukha #pyasa#इंसान #समाज