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खुशियां तो बांहे बांधे खडी़ थी बहुत कोशिश की मगर ह

खुशियां तो बांहे बांधे खडी़ थी बहुत कोशिश की मगर हम खोल न सके
आज वो खुद हमें ढूंढ रही हैं बांहे फैलाकर,जाने में बडी़ झिझक हो रही है
धोखे भी तो कुछ ऐसे ही मिले थे खुशियों की चाशनी बोलकर
समुंदर ए गम में डुबो कर चले गये

शायर आयुष कुमार गौतम खुशियां बांहे बांधे खडी़ थीं
खुशियां तो बांहे बांधे खडी़ थी बहुत कोशिश की मगर हम खोल न सके
आज वो खुद हमें ढूंढ रही हैं बांहे फैलाकर,जाने में बडी़ झिझक हो रही है
धोखे भी तो कुछ ऐसे ही मिले थे खुशियों की चाशनी बोलकर
समुंदर ए गम में डुबो कर चले गये

शायर आयुष कुमार गौतम खुशियां बांहे बांधे खडी़ थीं